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मम्मी के आजमाये नुस्खे

नीतू झारी

प्रकाशक : नालंदा प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 1990
पृष्ठ :168
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 5687
आईएसबीएन :81-8073-057-3

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प्रस्तुत हैं जीवनोपयोगी घरेलू नुस्खे.....

Mammi ke aajmaye nuskhe

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

पाश्चात्य संस्कृति के प्रभाव से भारतीय समाज में पीढ़ी-संघर्ष अपनी चरम सीमा पर ही पहुँचने लगा है। ऐसे में भी परंपराओं के पालन में हमारी बराबरी शायद ही कोई समाज कर सके ! इन परम्पराओं की संवाहिकाएँ विशेषकर महिलाएं ही हुआ करती हैं। भारतीय नारी आदिकाल से गृह-लक्ष्मी की भूमिका का निर्वाह करती चली आ रही हैं। हमारी बहू-बेटियाँ बचपन में दादी-नानी-माँ से पौराणिक कहानियाँ ही नहीं सुनतीं बल्कि वे उनसे व्यवहारिक ज्ञान भी प्राप्त करती हैं। यही ज्ञान आगे चलकर उन्हें कुशल गृहणी बनाया करता है। इस ज्ञान को प्राप्त करने में महिलाएँ महारत हासिल किए होती हैं।

लेखिका नीतू झारी ने समय-समय पर जितने भी व्यवहारिक अनुभव दादी-नानी एवं माँ से बटोरे हैं, वे सब उन्होंने इस पुस्तक में बिखेर दिए हैं। चूल्हे-चौके के उनके ये अनुभव प्रत्येक गृहणी के लिए मार्ग-दर्शक सिद्ध होंगे। रसोई में रूप-रस-गंध के संबंध में हमें सावधानियाँ बरतनी होती हैं। क्या हो गया, क्या होना चाहिए—इसे लेखिका ने सरल भाषा में अनेक प्रकार से समझाया है।

 हमारे यहाँ प्राकृतिक संसाधनों की कोई कमी नहीं है। लेखिका ने किसी विशेष रोग या सौंदर्यवर्धक उपाय के लिए एक नहीं, अनेक पर्याय प्रस्तुत किए हैं। ये सभी सर्व-साधारण के लिए सस्ते एवं सुलभ हैं।
पुस्तक विशेष रूप से भारतीय गृहणियों को व्यावहारिक दिशा-निर्देश देने के लिए प्रस्तुत की गई है। हमें पूरा विश्वास है कि हमारी गृहणियाँ इससे पूरा-पूरा लाभ उठाएँगी। यह पुस्तक प्रत्येक गृहणी के लिए उपादेय सिद्ध होगी।
मंगल कामनाओं के साथ !

डॉ. शीतांशु भारद्वाज

दो शब्द

आज की भागदौड़ की जिंदगी में जबकि बच्चे अपनी नई-नई नौकरियों के लिए शहर से दूसरे शहर या विदेशों में दूर, घर-परिवार, माँ-बाप से दूर दौड़ रहे हैं वहाँ उन्हें मम्मी का प्यार या मम्मी के आजमाये और सौगात में मिलने वाले नुस्खे नहीं मिल पाते। इसका एक बड़ा कारण नई पीढ़ी और जेठी पीढ़ी का आपसी तालमेल न होना भी है।
इन्हीं सब समस्याओं के समाधान को एकजुट पिरोकर मैंने यह कड़ी पेश की है। उम्मीद है, मेरे लिए मम्मी की कुछ यादें ताजा करती प्रस्तुत पुस्तक एक उपयोगी पुस्तक सिद्ध होगी।

नीतू झारी

1
खान-पान संबंधी नुस्खे


आम के आम और गुठलियों के दाम

अक्सर खाना बनाने व खाने के बाद बहुत-कुछ ऐसा बच जाता है जिसे उसी आकार या रूप में इस्तेमाल करने पर आपका दोबारा मन नहीं होता। चाहे वह उम्दा किस्म के पकवान ही क्यों न हों। ऐसे में बचे हुए खाद्य-पदार्थों का सही उपयोग कर आप एक सुघड़ गृहणी का परिचय दे सकती हैं और कामकाजी महिलाओं की भाँति बिना बाहर जाए अच्छी-खासी रकम की बचत कर सकती हैं।

केले के छिलकेः

ताजे केलों को धो-पोंछकर उसके छिलके उतारें। छिलकों को एक-एक इंच के टुकड़े करें व सूखी भिंडी की भाँति कढ़ाई में छोंकें। एक अलग ही स्वाद की पौष्टिक तत्त्व वाली सब्जी तैयार हो जाएगी।

केले के छिलके सुखाकर जलाने से दुर्गन्ध दूर होती है।
केले कि छिलके के अंदर वाले भाग से चिकने बर्तन रगड़ें। बर्तन चमक जाएँगे।
सफर में अगर जूते गंदे हो गए हों आपके पास जूतों की पॉलिश नहीं है तो केले के छिलके के अन्दर का भाग जूतों पर मल लें और 30 मिनट सूखने दें। जूते सूखे कपड़े से पोंछने पर चमक जाएँगे।

आम के छिलके :

आम के छिलकों को छाँव में सुखा लें। उन्हें कोयले पर जलाकर धुँआ करें, मच्छर व कीटाणु भाग जाएँगे।

अनार के छिलके :

अनार के छिलकों को पानी में उबाल लें। उससे कुल्ला करने से मुँह की बदबू दूर होती है।
अनार के छिलके फेंकें नहीं, उन्हें सुखाकर चूर्ण बना लें। जब भी पेट में दर्द हो, दूध के साथ उसकी फंकी मार लें।
अनार के छिलकों को लहसुन के साथ पीसकर फोड़े, फुंसी, दाद व खाज में लगाने से फायदा होता है।
अनार का छिलका मुँह में रखकर चूसने से खाँसी में आराम मिलता है।
अनार के जलाए हुए छिलके को पीसकर उसमें हल्दी मिलाकर बांधने से पुरानी चोंट की पीड़ा से छुटकारा मिलता है।
दमा तथा साँस के रोग में शहद के साथ अनार के सूखे छिलकों का पूर्ण सेवन हितकारी होता है।
मासिक धर्म के दिनों में अनार के छिलकों के दो चम्मच चूर्ण को गरम पानी अथवा चाय के साथ 5 दिन तक लेने से सक्तस्राव कम होता है।
अनार के छिलके पीसकर स्तनों पर पंद्रह दिनों तक रात को सोते समय लेप करने से स्तनों का ढीलापन दूर हो जाएगा और स्तन पुष्ट हो जाएँगे।


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